इक दिल वालों की बस्ती थी
जहाँ चांद और सूरज रहते थे ...

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कुछ सूरज मन का पागल था
कुछ चांद भी शोख चंचल था ...
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बस्ती बस्ती फिरते थे
हर दम हँसते रहते थे ...
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फिर इक दिन दोनो रूठ गए
और सारे सपने टूट गए ...
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अब चांद भी उस वक़्त आता है
सूरज जब सो जाता है ...
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बादल सब से कहते हैं
सूरज उलझा सा रहता है ...
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चांद के साथ सितारे हैं
पर सूरज तन्हा रहता है ...
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1 comment:

Anonymous said...

site par kee meyhnat batati hay k dil kee lagi kuch jyada hee deewangee tak hay