हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते ...

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते

वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते







जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन




ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते






तूने आवाज़ नहीं दी कभी मुड़कर वरना




हम कई सदियाँ तुझे घूम के देखा करते







लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो




ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते ...

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