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इक दिल वालों की बस्ती थी...
जब भी कोई सपना टूटा
जब भी कोई सपना टूटा
मेरी आँख वहाँ बरसी
है
तड़्पा हूँ मैं, जब भी कोई
मछली पानी को तरसी है
गीत दर्द का पहला बेटा
दुःख है उसका खेल खिलौना
कविता मेरी, तब मीरा होगी
जब हंस कर जहर पिया
जायेगा
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कोई दिल के खेल देखे, के मोहबतों की बाजी ... ,
... वो कदम कदम पे जीते, मैं कदम कदम पे हारा....
काश! ........... इक 'खास' नजर इन पर भी पड़ती :-
dil ki aawaaj
,
tamanna
,
tumhare liye
पिद्दले बरस ये खौफ़ था...
तुझे खो न दूँ कहीं...
अब के बरस ये दुआ है...
तेरा सामना न हो...!
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आज हार भी कहे, तुझे...जीत...मुबारक...
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बेगुनाह मुजरिम...
अपने हिस्से की धूप को तरसते,
किसी की यादों के दरख्त के साए में
अपने पैर के अंगूठे से दायरे बनाते...
और फिर उन्ही दायरों में उलझ कर रह गए
इक बेगुनाह मुजरिम की दास्ताँ ....
आगे क्या लिखा है...?
...अब इन तक्दीरों से पूछने कौन जाये ...???
तकदीर देखूं...
तो इक बूँद नहीं नसीब...!
और प्यास देखूं...
तो समुन्दर की प्यास है...!!!
अब किसने डाली मेरे दर्द पर नजर...
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