किस वतन की तलाश ...

मैं अपने घर में ही अजनबी हो गया हूँ आ कर



मूझे यहाँ देखकर मेरी रूह डर गई है

सहम के सब आरज़ुएँ कोनों में जा छुपी हैं

लवें बुझा दी हैंअपने चेहरों की, हसरतों ने

कि शौक़ पहचानता ही नहीं

मुरादें दहलीज़ ही पे सर रख के मर गई हैं





मैं किस वतन की तलाश में यूँ चला था घर से


कि अपने घर में भी अजनबी हो गया हूँ आ कर

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