मेरा गुनाह ...

ज़िन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं,

और क्या जुर्म है, पता ही नहीं...





इतने हिस्सों में बंट गया हूँ मैं,

मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं...!

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